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Saturday, 31 July 2021

1724 मुंशी प्रेमचंद

 प्रेमचंद के जीवन पर ,बचपन की स्मृतियों का था प्रभाव ।

बचपन से ही रहा सदा, प्रेमचंद को प्यार का अभाव ।

सात साल की उम्र में, माँ का था छिन्न गया प्यार ।

पंद्रह साल की आयू में ,हो गया था विवाह ।

16 की उम्र हुई तो पिता का छीन्न गया साया।

जीवनसंगिनी संग भी  फिर विवाह ना चल पाया।

बाल विधवा शिवरानी संग फिर ब्याह लिया रचा।

उसके बाद मिली प्रेमचंद को जीवन में नयी राह।

उनकी कहानी, उपन्यासों में उन के साक्षात अनुभव दिखते हैं ।

आसपास के सामाजिक दृष्टिकोण से प्रभावित हो प्रेमचंद लिखते हैं ।

सेवा सदन,प्रेम आश्रम,रंगभूमि, निर्मला,प्रतिज्ञा ,अहंकार।

गबन ,कर्म भूमि ,गोदान ,मंगलसूत्र है उनके उपन्यास ।

300 से अधिक कहानियों की उन्होंने रचना की ।

कई पत्र-पत्रिकाओं में संपादन कर साहित्य की सेवा की ।

फिल्म नगरी में भी प्रेमचंद ने पटकथा का काम किया ।

फिर सब छोड़ के ,लंबी बीमारी के बाद दूसरे धाम प्रस्थान किया।

(जन्म 31 जुलाई 1880 लमही यूपी भारत

मृत्यु वाराणसी यूपी 8 अक्टूबर 1936)

1.20 pm 31 July 2021

Friday, 30 July 2021

1723 गीत : मैं न जानूँ ,कब तेरा मैं हो गया


 2122 2122 212

2122 212 , 2122 212

212 212 212

मैं न जानूँ ,कब तेरा मैं हो गया।

देखते- ही देखते मैं , खो गया।

 मैं न जानू.........

तुझ में ही खोया रहूँ, तुझ मे हीं डूबा रहूँ।

तू ही नजरों में रहे,होश कुछ भी कब रहे।

देखते ही देखते ,मैं तो पूरा खो गया,

 खो गया ,खो गया, खो गया।

मैं न जानू......।

तेरे ही सपने सजें ,तेरी ही यादें पलें।

तुझ में ही खोया रहूँ, तेरे ही अरमां पलें।

याद में खोए खोए, सब मेरा तो खो गया,

 खो गया ,खो गया, खो गया।

मैं न जानू......

कर ले अब कुछ तो करम, यूँ ही न बैठेंगे हम ।

पाके तुझको ही तो अब,लेंगे अपने दम में दम।

कुछ कहाँ है अब बचा, जो बचा था खो गया,

 खो गया ,खो गया, खो गया।

मैं न जानू......

 धुन ; तुम ना जाने किस जहां में खो गए

1.21 pm 30 July 2021

Thursday, 29 July 2021

1722 :गीत :बता मैंने बिगाड़ा क्या

 1222 1222 1222 1222

अगर तू चाहता मुझको, मैं तेरा हो गया होता।

छुड़ाता अगर न तू दामन, तो दिल ये मिल गया होता।

बता मैंने बिगाड़ा क्या ,

तेरा कोई सहारा क्या ।

तेरा मैं चाहने वाला था,

तुझे अपना ही माना था।

थी दिल की चाह बस इतनी ,तू मेरा हो गया होता ।

अगर तू चाहता मुझको.......।


अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा ,

अभी भी मैं हूँ बस तेरा ।

तू चाहे दिल लगाना जो ,

तू चाहे पास आना तो ।

कि सब कुछ छोड़ के मैं तो ,तुम्हारा हो गया होता।

अगर तू चाहता मुझको.......।

न कर तू देर अब ज्यादा ,

कि मेरा प्रेम है सादा।

 के आजा अब तो बाहों में ,

खड़े हैं तेरी राहों में।

 तेरे आने से, मेरे दिल का, आंगन खिल गया होता।

अगर तू चाहता मुझको.......।

अगर तू चाहता मुझको, मैं तेरा हो गया होता।

छुड़ाता अगर न तू दामन, तो दिल ये मिल गया होता।


(धुन:: मुझे तेरी मोहब्बत का सहारा मिल गया होता)

3.03pm 29 July 2021

Wednesday, 28 July 2021

1721 गीत :क्यों है मैंने, उसको चाहा, जो कभी मेरा न था

 2122 2122 2122 212

क्यों है मैंने, उसको चाहा, जो कभी मेरा न था ।

दिल को मेरे तोड़ा उसने ,जैसे दिल ये दिल न था।

क्यों है मैंने उसको चाहा...........।

1,)

जिंदगी को, जब भी चाहा, खेलना खुद के लिए ।

जिंदगी ने, ऐसे ऐसे ,दाग फिर मुझ को दिए ।

क्या मेरा दिल, इक खुशी के भी ज़रा काबिल न था।

क्यों है मैंने उसको चाहा...........।

2.)

 प्यार में, उसके था छोड़ा, मैंने सारा ये जहां ।

क्यों भला फिर, उसने लूटा, मेरी खुशियों का जहां।

क्या मेरा यह प्यार उसके ,प्यार के काबिल न था ।

क्यों है मैंने उसको चाहा...........।

3.)

अब तो समझ, ए मेरे दिल, ये जहां तेरा नहीं ।

छोड़ कर तू, इस जहां को, चल निकल जा और कहीं ।

सोचने दे, कौन किसके, फिर यहाँ काबिल न था ।

क्यों है मैंने उसको चाहा...........।

11.46 am 28 July 2021


(धुन  दिल लगाकर हम ये समझे जिंदगी क्या चीज है

          इश्क कहते हैं कि प्यार आशिकी क्या चीज है)


Tuesday, 27 July 2021

1720 क्यों तुझे मैं समझ बैठा अपना

 क्यों तुझे मैं समझ बैठा अपना ।

तू आई जिंदगी में ,बनके सपना ।

छुप गई तू आँख खुलते ही ,

सपना हो ना सका कभी अपना ।

क्यों तुझे मैं......

 जिंदगी के ख्वाब सजते ही रहे ।

ख्वाब बनते और बिगड़ते ही रहे।

पूरा कोई भी न हुआ ख्वाब मेरा।

मैंने पूरा ,करना चाहा जितना ।

क्यों तुझे मैं .......

गर्म और सर्द हवाएं देखी ।

प्यार देखा पर जफाएं देखी ।

खुशी और गम के घेरे से ,

न निकल सका, चाहा जो निकलना ।

क्यों तुझे मैं....।

आजा सज के ख्वाब कर पूरे मेरे ।

आजा ले ले, संग मेरे तू फेरे।

दूर रहना ,न अब गवारा है,

जी लिया तन्हा जीना था जितना 

क्यों तुझे मैं....

2 47pm 27 July 2021


Monday, 26 July 2021

1719 प्यार होता है, या नहीं होता

  21 22 12 12 22

 

तू मेरा कुछ तो लगता है शायद।

 हां तभी दिल ये मिलता है शायद।


रात दिन मैं नहीं ,तू भी मुझको 

याद कर कर के जगता है शायद।


यूं ही मिल जाते जो हैं अक्सर हम ।

कुछ तेरा मेरा रिश्ता है शायद ।


जब वो हमसे नजर चुराता है ।

तब खफा खुद से होता है शायद।



हो गई है जो दोस्ती अपनी।

देख कर जग ये जलता है शायद ।


जलने वालों को देख दिल मेरा।

मन ही मन में ये हँसता है शायद ।


जो खुली आँख से न दिखता है।

बंद आंखों से दिखता है शायद ।


मुफ्त में प्यार ये नहीं मिलता।

बिल चुकाना ही पड़ता है शायद।


 प्यार का दाम क्या है दुनिया में ।

प्यार का प्यार होता है शायद ।


प्यार होता है या नहीं होता ।

पर नहीं इसमें होता है "शायद" ।


12.08 pm 26 July 2021

Sunday, 25 July 2021

1718 लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक

  23 जुलाई 1856 को चिखाली( रत्नागिरी, महाराष्ट्र) में जन्मे बाल गंगाधर।

ले उच्च शिक्षा पढ़ाने लगे वो गणित फिर।

ब्रिटिश प्राधिकारी उन्हें "भारतीय अशान्ति के पिता" कहते थे।

पर बाल गंगाधर भारतीयों के दिल में रहते थे।


उन्हें, "लोकमान्य" का आदरणीय शीर्षक भी प्राप्त हुआ।

लोगों द्वारा स्वीकृत उनका नायक, जिसका अर्थ हुआ।


मजबूत अधिवक्ता, प्रबल परिवर्तनवादी बाल हुआ।

"स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूँगा"

उनका यह नारा जन-जन में प्रसिद्ध हुआ।


तिलक ने इंग्लिश में दो दैनिक समाचार पत्र शुरू किये।

"मराठा दर्पण" व मराठी में "केसरी"  जो जनता में बहुत लोकप्रिय हुए। 


अंग्रेजी शासन की क्रूरता और भारतीय संस्कृति के प्रति हीन भावना की आलोचना की।

 और उन्होंने ब्रिटिश सरकार से तुरन्त भारतीयों को पूर्ण स्वराज माँग की ।


वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए ।

और कांग्रेस के नरमपंथी रवैये के विरुद्ध बोलने लगे।


कांग्रेस गरम दल और नरम दल में विभाजित हो गयी।1907

गरम दल  वालों की फिर एक नई कांग्रेस बन गई।


इस में लोकमान्य तिलक ,लाला लाजपत राय और श्री बिपिन चन्द्र पाल शामिल हुए।

 ये तीनों जन-जन में "लाल-बाल-पाल" के नाम से प्रसिद्ध हुए।


जब प्रफुल्ल चाकी और क्रान्तिकारी खुदीराम बोस के बम हमले का समर्थन किया।

तो उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) स्थित मांडले की जेल डाल दिया।1908


एनी बेसेंट और मुहम्मद अली जिन्ना संग अखिल भारतीय होम रूल लीग की स्थापना की।

पूरे भारत के लिए समान लिपि के रूप में देवनागरी की वकालत की ।


 केसरी में छपने वाले उनके लेखों की वजह से उन्हें कई बार जेल हुई।

उन्होंने अनेकानेक पुस्तकें लिखीं,जेल में भी"गीता रहस्य" पर पुस्तक लिखी।


 धीरे-धीरे उनका स्वभाव गर्म से नरम होता गया।

1 अगस्त,1920 ई. को बम्बई में  देश का बाल मृत्यु को  प्राप्त हुआ।

भुला नहीं नहीं सकते वीरों का बलिदान।

इन सब के ही बलिदान से देश हुआ आजाद।

1.20 pm 23 July 2021

Saturday, 24 July 2021

1717 चंद्रशेखर आजा़द

 23 जुलाई 1906 को भावराँ गाँव में था चंद्रशेखर का जन्म हुआ।

 पंडित सीताराम तिवारी और माँ जगरानी देवी को तब था बहुत हर्ष हुआ।


प्रारंभिक जीवन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में बीता।

संग आदिवासियों के रहकर धनुष बाण में पाई निपुणता।


 भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के वो वीर स्वतंत्रता सेनानी थे।

 वे शहीद राम प्रसाद बिस्मिल व शहीद भगत सिंह सरीखे क्रान्तिकारियों के  साथी थे।


गांधी संग असहयोग आंदोलन में भाग लिया, पकड़े जाने पर 'आजाद" उसने नाम बताया।

नंगा कर बेंत की टिकटी से बाँध ,14 वर्ष के बालक को फिर बेंत लगाने का फरमान सुनाया।


जैसे-जैसे बेंत, उसके नंगे तन पर पड़ता था।

उसके मुख से  'भारत माता की जय!' निकलता था।


 1 अगस्त 1925 को काकोरी काण्ड को अंजाम दिया गया। 

इसके बाद वह तो बच निकले  पर,उनके चार साथियों को पकड़ फांसी पर लटका दिया।

( पण्डित राम प्रसाद 'बिस्मिल', अशफाक उल्ला खाँ एवं ठाकुररोशन सिंह को 19 दिसम्बर 1927 तथा उससे 2 दिन पूर्व राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को १७ दिसम्बर १९२७ को फाँसी पर लटकाकर मार दिया गया)


सांडर्स को भगतसिंह संग मार  ,लाला लाजपत राय की मौत का बदला लिया।

चन्द्रशेखर के नेतृत्व में भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की केन्द्रीय असेंबली में बम विस्फोट किया।( 8 अप्रैल, 1929)


एक बार धन जुटाने की खातिर मरनासन्न साधू की सेवा कीया,

 पर जब देखा साधु हट्टा कट्टा हो रहा है तब इरादा छोड़ दिया।


अल्फ्रेड पार्क में मित्र सुखदेव राज से मन्त्रणा कर ही रहे थे ।

तभी वहां आ पहुंचे अंग्रेज ,जो उन पर नजर रख रहे थे।

(तभी सी०आई०डी० का एस०एस०पी० नॉट बाबर)  

पीछे-पीछे भारी र्पुलिस भी आ गयी,दोनों ओर से  गोलीबारी हुई।

आजाद को वीरगति प्राप्त हुई और यह दुखद घटना इतिहास में दर्ज हुयी।

(27 फ़रवरी 1931 के दिन घटित )

वहीं अंग्रेजों ने उनका अंतिम संस्कार भी कर दिया।

जब यह घटना सब देशभक्तों तक पहुंची, लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा।


चारों और आजाद की जय जय कार कर रहे थे लोग।

और इलाहाबाद की सड़कों पर जुलूस निकाल अंग्रेजों का कर रहे थे विरोध।

इस तरह से लोगों ने इस वीर को अंतिम सम्मान दिया,

16 वर्षों  पश्चात देश आजाद हुआ पर, आजाद भारत को देखने के लिए,

 आजाद तब जिंदा नहीं था।


4.51 pm 23 July 2021

Friday, 23 July 2021

1716 Ghazal : गज़ल : आ भी जाओ कि अब तो बाहों में

 2122 1212 22

काफि़या अती, Qafia ati

रदीफ़ है, Radeef Hai

लंबे गेसू वो जब झटकती है।

जु़ल्फ़ शाने पे उनके गिरती है ।


जब लगाते वो आँख में काजल।

धार सुरमे की उनपे जचती है।


होंठ उनके युँ सुर्ख होते हैं ।

मखमली शाम जैसे ढलती है।


पाँव नाजुक हैं ,फूल से उनके।

वो कदम धीमे-धीमे रखती है ।


जब वो आती हमारी महफिल में ।

फिर कहाँ अपनी, पेश चलती है ।


सामने उनके रहते हैं, हम तो ।

क्यों नजर उनकी, फिर भटकती है ।


मिलते जब नैन ,नैन से उनके।

हर तमन्ना मेरी मचलती है।


आ भी जाओ कि अब तो बाहों में।

 अब तो दूरी बहुत ये खलती है।


3..55 pm 22July 2021

Thursday, 22 July 2021

1715 Ghazal : गज़ल : बेवफाई से वो न हटती है

 2122 1212 22

काफि़या अती, Qafia ati

रदीफ़ है, Radeef Hai

चोट जब दिल पे, कोई लगती है।

आह फिर जोर की, निकलती है।


दिल पे रखता कोई नहीं मरहम।

इसलिए चोट ये न भरती है ।


 कोई सुनता नहीं है दर्दे दिल ।

आग फिर आँसुओं में ढलती है।


जितना भी चाहे ,प्यार करता हूँ।

बेवफाई ,से वो न हटती है ।


रहते हैं दूर दूर वो हमसे।

रूह तन्हा मेरी भटकती है ।


छोड़ दे साथ अब तू मेरा के ।

अब न मुझसे ये शम्मा जलती है।

3.46 pm 3.55 pm 22July 2021

Wednesday, 21 July 2021

1714 Gazal गज़ल : बच के रहना बुरी नज़र से तू

 2122 1212 22

काफि़या आ Wafa Aa

रदीफ़ देंगे , Radeef Denge

जलने वाले कहाँ शिफा देंगे ।

लोग जालिम ये बद्दुआ देंगे ।


बच के रहना बुरी नज़र से तू।

लोग तुझको नज़र लगा देंगे ।


जो सताती है तेरे इस दिल को।

याद उसकी वो सब भुला देंगे ।


प्यार तुमने किया सितमगर को ।

देख अब लोग क्या सिला देंगे ।


दिल के शोलों को तू दबा जितना ।

लोग बुझती को और  हवा देंगे।

3.28 pm 20 July 2021

Tuesday, 20 July 2021

1713 Ghazal : गज़ल : है ये बस्ती यहाँ लुटेरों की

 2122 1212 22

काफि़या आ  Qafia Aa

रदीफ़ देंगे  Radeef Denge


नींव घर की ,तेरे हिला देंगे ।

लोग गुलशन ,तेरा जला देंगे ।


कर ले कितना भी तू भला उनका ।

लोग आखिर ,तुझे दगा देंगे ।


हर तरफ है घना अंँधेरा जो।

लोग तेरा दिया बुझा देंगे ।


करले जितनी भी तू अच्छाई।

लोग तुझको,ठ न कुछ सिला देंगे।


है ये बस्ती यहाँ लुटेरों की ।

घर न बसने कभी तेरा देंगे।

3.17pm  20 July 2021

Monday, 19 July 2021

1712Ghazal : गज़ल :बोलकर ही नहीं कोई राजी़

 2122 1212 22

काफि़या  अर

रदीफ़ है

कैसा अपना ये देख मुकद्दर है।

मुझसे हर कोई देख बढ़कर है ।


है किया मैंने, जुल्म कोई क्या ?

साथ मेरे ही ऐसा क्यों कर है।


 बोलकर ही नहीं कोई राजी़।

दिल हुआ हर किसी का पत्थर है ।


मुड़ गया मैं, पहाड़ जब देखा ।

दूसरी और तो समंदर है ।


वो है सबसे हसीन दुनिया में।

 बोलता झूठ वो सरासर हैं ।


कर दिया(हो गया)  चीथड़े है दिल मेरा।

 कोई मिलता नहीं रफूगर है।

 4:15 pm 19 July 21

Sunday, 18 July 2021

1711 Ghazal गज़ल : मिलती दीवानों को जुदाई है

 2122 1212 22

काफि़या   आई , Wafa Aai

रदीफ़ है ,Radeef.  Hai


रीत कैसी  यहाँ बनाई है।

मिलती दीवानों को जुदाई है।


प्यार का मर्ज  जाने है कैसा।

है नहीं इसकी कोई दवाई है।


जब जुदाई का गम है मिल जाता।

बंदा हो जाता है , सोदाई है।


करती दीवानों को अलग है जो।

 रीत ऐसी  न  क्यों हटाई है।


बीच आ जाए इश्क यारी  में,

इसमें पड़ जाती फिर खटाई है।


करले मेहनत जो तूने करनी है

मिलती आखिर में फिर मिठाई है।

( बाद में मिलती है फिर मिठाई है)


बदला मौसम है इस तरह देखो।

 लेनी पड़ती के अब रजाई है।


6.05pm 18 July 2021

Saturday, 17 July 2021

1710 निकल पड़े हैं अब कारवां बनते जाएंगे

 तुम दूर होना ही चाहते थे अगर नजरों से,

तो बता देते हमको, हम खुद ही दूर हो जाते ।


जो न था पसंद साथ  तुम्हें मेरा,

तो क्यों हमें इस मोड़ पर लाकर छोड़ा ।

न चलते सफर पर साथ हमारे,

बता देते ,तो सफ़र पर अकेले ही निकल जाते।


 मुश्किल नहीं पाना मंजिल को कोई ,

पर हो साथी अगर साथ तो हो जाते हैं ,

सफर के मुश्किल रास्ते भी आसान।

न गवारा था तुम्हें साथ तो बता देते ।


हमको पानी ही है मंजिल हम रुकने वाले नहीं।

तू नहीं साथ तो कोई हमें गम नहीं ।

हमने पकड़ी है राह हम चलते जाएंगे ।

निकल पड़े हैं अब कारवां खुद बनते जाएंगे ।

4.46 pm 16July 2021

Friday, 16 July 2021

1709 Ghazal : गज़ल : दिल न माने दिमाग की बातें

 2122 1212 22

काफि़या : आ Qafia aa

रदीफ़ : गया कोई, Radeef : Gya Koi

मुझको मुझसे चुरा गया कोई ।

मुझको अपना बना गया कोई ।


अपनी धुन में, ही था हमेशा गुम।

 धुन नई अब ,सुना गया कोई ।


दिल को माना था अपना बरसों से ।

अपना हक क्यों जता गया कोई ।


दिल न माने दिमाग की बातें ।

दोनों को ही लड़ा गया कोई ।


अब नहीं हक, मेरा कोई मुझ पर ।

बात मुझको बता गया कोई।

3.05pm 16 July 2021

Thursday, 15 July 2021

1708 Ghazal गज़ल : जबं हो जाता ,दीदार है उनका

 2122 1212 22

काफि़या अब

रदीफ़ निकलती है


जाने वो घर से कब निकलती है।

 बिजलियाँ गिरती जब निकलती है ।

 

निकले है जब वो घर से बन ठन के ।

आह फिर इक या रब  निकलती है।


चाँद तारे सजा बदन पर वो।

सब ये कहते गजब निकलती है ।


जब हो जाता, दीदार है उनका ।

आह फिर इक अजब निकलती है।


जब भी आती  है वो ख्यालों में ।

हिचकियांँ बे सबब निकलती है।


हुस्न में इक स्वैग है उसके

 हर जगह बा अदब निकलती है



सामने होती जब वो नजरों के

दिन है होता न शब निकलती है।


इक झलक उसकी देखले जो भी ।

उसके दिल की तलब निकलती है


क्यों वो आती नहीं है अब बाहर।

क्यों नहीं घर से अब निकलती है।


होश खो बैठी प्यार में शायद ।

घर से बाहर न अब निकलती है ।


3.11 pm 15 July 2021

Wednesday, 14 July 2021

1707 Ghazal : गज़ल.: काश तुझसे न मैं मिला होता

2122 1212 22

काफि़या इला  Qafia ila

रदीफ़ होता Radeef Hota

 गर न तुझको कोई गिला होता ।

तो ये चेहरा तेरा खिला होता ।


दे दिया होता गर सहारा तो ।

अपना गम भी तो फिर सिला होता।


 अब तो ये सोचता ही रहता हूँ।

 काश तुझसे न मैं मिला होता।


 साथ देते सफर में अगर मेरा 

प्यार का फिर बना किला होता।


ढूंँढ लेते कोई सहारा हम, तो फिर, 

जानलेवा न गम मिला होता।

12.40pm 14 July 2021

Tuesday, 13 July 2021

1706 Ghazal :. गज़ल.: मेरा तन मन, हुआ तुम्हारा है

  2122 1212 22

काफि़या आरा Qafia Aara

रदीफ़ है.       Radeef Hai

मुझको तो बस तेरा सहारा है।

 साथ तेरे ,समां गुजारा है ।


इस कदर छाई है तू तन मन में।

 मेरा तन मन, हुआ तुम्हारा है।


 दूर जब से, हुई तू ,नजरों से ।

बंद आँखों, से भी निहारा है ।


 मैं हुआ हूँ ,जो तेरा दीवाना।

 तेरी आँखों का खेल सारा है।


 डोलती है यहाँ वहाँ मेरी ,

कश्ती को कब, मिला किनारा है।


 लुट गया सब जो पास था मेरे।

जब से अपने, ये दिल को हारा है।


हो गया है, जो इक दफा देखो।

प्यार होता ,न फिर(कहाँ)दुबारा है ।


आज आशिक खड़ा है जो आगे।

 कल चमकता हुआ सितारा है।

12.30 pm 13 July


Monday, 12 July 2021

1705 Ghazal गज़ल :वो, करते थे प्यार बस दिखाने को

 2122 1212 22

काफि़या आने

रदीफ़ को

 हैं वो बेताब पास आने को।

कह के थे जो गए भुलाने को।


जो थे वादा वो ले गए हमसे।

हमको बरसों लगे निभाने को।।


मुझ पे जो था किया सितम उसने।

 दिल नहीं भूलता फसाने को।


 मिलते हैं प्यार से जो दिल वाले।

 क्या हो जाता है इस जमाने को।।


कैसे होता यकीन हमको ,वो।

करते थे प्यार बस दिखाने को।।


 रहते थे पास दिल के जो मेरे ।

अब हैं बेताब दूर जाने को।।


याद आते रहे हमेशा वो,

 जिद थी दिल से जिन्हें भुलाने को।।

10.28am 12 July 2021     

Sunday, 11 July 2021

1704 खुद पर ज़रा संयम धरो,

क्यों बात बात पर ,

वह हम से टकराते हैं ।

हम जब कुछ कहते हैं तो,

 हमको आंख दिखाते हैं ।


हम तो सीधे-साधे है,

उनकी तरफ की बात करते।

 पर,वह बात नहीं समझते ,

और हमें धमकाते हैं ।


समझ  न आएं उनकी बातें, 

बात-बात पर गुस्सा करना उनकी आदत ,

जब हम कुछ उनसे कहते।

तो कहते हैं आप ही गुस्सा दिलाते हैं ।


वह क्या कोई बच्चे हैं ,

दूसरों के कहने में आते हैं । 

अपना कोई अस्तित्व नहीं क्या,

जो दूसरों से बहक जाते हैं।


 खुद पर ज़रा संयम धरो,

 दूसरों के उकसाने पर धीर धरो ,

धीर धरने से सब कार्य ,

तुरन्त सीधे हो जाते हैं।

6.06pm 11 July 2021

Saturday, 10 July 2021

1703 Ghazal : गज़ल: क्यों, छोड़कर मुझको घर गई है वो

 2122 1212 22

काफिया अर

रदीफ़ गई है वो

नम जो आँखों  को कर  गई है वो।

 दर्द लाखों ही भर गई है वो।।


गम हिज्र (जुदाई) का है जो  दिया उसने 

इश्क को कर अमर  गई है वो।।


ज़िन्दगी में  खुशी थी चाही पर।

ज़िन्दगी गम से भर गई है वो।


छोड़ दी चाह उससे मिलने की 

मान उसको के मर गई है वो।


देख कर इस जमाने के हालात

लगता है मुझको डर गई है वो।


क्या हुआ साथ उसके ऐसा, क्यों,

छोड़कर अपना घर गई है वो।

9.11pm 10 July 2021


            

Friday, 9 July 2021

1702 वो नहीं अनजान

 वो नहीं अनजान हमारी नाराजगी से,

इसीलिए शायद कनखियों से देखते हैं।

क्यों दिल्लगी वो  करते हैं हमसे,

क्यों हमारी मासूमियत से खेलते हैं।


कह दो अगर नहीं प्यार अपना गवारा,

छोड़ देंगे आज ही हम साथ तुम्हारा।

इस तरह क्यों बेरुखी करते हैं हमसे,

क्यों वो हमारी जिंदगी से खेलते हैं।


देने को तैयार है हम जान भी उन पर,

बदल लेंगे रास्ता भी,जो चाह है उनकी।

बोलते नहीं कुछ, पलक भी नहीं झपकते,

क्यों वह इस तरह चुप हो कर हमें देखते हैं।


जो हद हो ही चुकी है उनकी ,

जो हम सह नहीं पा रहे हैं यह सब।

हमको भी नहीं आता है यह समझ, 

क्यों हम उनकी बेरुखी को झेलते हैं।

05.12pm 09 July 2021

Thursday, 8 July 2021

1701Ghazal : गज़ल : मर ही जाते कि बेवफाई से

 2122 1212 22

काफि़या अर ,Qafia ar

रदीफ़ होती,Radeef Hoti


तुमको भी मेरी कुछ खबर होती।

राह में तुम जो हमसफर होती।


होते जो राजदार तुम मेरे ।

तो न हालत ये दरगुज़र होती ।(उपेक्षित अलग)


 साथ देते जो इस सफर में तुम ।

अपनी इज्जत ये बेशतर होती ।(अधिक)


 गर सहारा तेरा मिला होता ।

इस जहां में न फिर जबर होती ।(अत्याचार)


 साथ तेरा हमें मिला होता ।

पाई मंजिल ये पेशतर होती।( पहले, पूर्ब )


मर ही जाते कि बेवफाई से 

उस खुदा की न जो नजर होती।

1.40pm 08 July 2021

Wednesday, 7 July 2021

1700 Dohe दोहे (मर्यादा)

1)

मर्यादा जो तोड़िये, होता है आघात ।

टूटे से ना ही जुडे़ ,धागा हो या बात।।


2)

सीमा को जो तोड़ दे ,वो क्या पाये जान।

मर्यादा में जो रहे ,पाये वो ही मान।।

3.57pm 4 July 2021

*संगीता शर्मा कुंद्रा, चंडीगढ़*

Tuesday, 6 July 2021

1699 नज़्म :है यकीं एक दिन तू आएगी

 जबसे चाहा है, टूट कर तुझ को ।

हो रही तबसे ,है जलन कुछ को।


प्यार की राह हो गई मुश्किल ।

डर सताने लगा है अब मुझ को ।


है यकीं एक दिन तू आएगी ।

यूँ ही बहलाता ,हूँ रहा खुद को।


खो गया प्यार में तेरे इतना ।

याद कुछ भी नहीं है अब मुझको ।


तू ही तू ज़हन में समाई है।

भूल बैठा तेरे सिवा खुद को ।


 यूँ ही घर बार था नहीं छोड़ा ।

मोक्ष का पहले था यकीं बुध को।

12.10pm 06 July 2021

Monday, 5 July 2021

1698 काश..मानव पशु ही बन जाता

 गर्मी ...गर्मी का क्या है ,

मानो तो गर्मी ..न मानो तो गर्मी कहाँ ।

पूछो तो जरा पशु पक्षियों से ,

कैसे गर्मी से खेल रहे हैं ।

एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर झूल रहे हैं ।

अपने काम में लगे हुए,

 कैसे मौसम की मार झेल रहे हैं ।

कोई कसूर नहीं है उनका,

 फिर भी ...देखो... बैठे हैं ।

मानुष के तो कर्म सामने आए हैं ,

फिर क्यों इतने अधीर बैठे हैं ।

गर्मी... गर्मी का क्या है ...

मानो तो गर्मी न मानो तो गर्मी कहाँ।

अब भी समय है ,सुधर जा मानव

पर ...कहाँ इसको सुधरना है ।

इसको तो तरक्की अपनी शर्तों पर करनी है,

धरती का कहाँ कुछ सोचना है।

 माँ माँ कहते रहते हैं पर,

 मांँ की भी किसको कदर यहाँ।

 काश..मानव पशु ही बन जाता ,

कम से कम इस धरती का ,

यह हाल तो न कर पाता ।

जी लेता जैसे रखती धरती माता ,

फिर चाहे जो हो जाता।

1.38pm 5 july 2021


Sunday, 4 July 2021

1697 गंदी मछली पानी में, कर दे गंदा तालाब

अच्छी तुम संगती करो ,अच्छा पाओ ज्ञान ।

जो होवे संगति बुरी ,मद्दम होय मान ।


गंदी मछली पानी में, कर दे गंदा तालाब ।

दूर रहो तुम ऐसों से, सुनते न जो बात।।


जीवन में अनुशासन रहे ,मिल जाए सम्मान ।

अनुशासन हीन जीवन तो, बिल्कुल पशु समान ।।


मेहनत तुम करते रहो ,यही जीत का आधार ।

मेहनत से ही पाओगे, मंजिल अपनी पास ।


निर्बल पर तुम दया करो ,दो तुम उनका साथ ।

ऐसे कर्मों से सदा ,बढ़ता आगे समाज।

3.46pm 4 July 2021

Saturday, 3 July 2021

1696 दोहा (राधा- मीरा)


1)

*मीरा* होई बाँवरी, पा मोहन का प्यार ।

सुध बुध सगरी खो गई, भूला सब संसार ।


2)

देखे सूरत श्याम की, *राधा* बैठी घाट ।

घर की कोई सुध नहीं ,माता देखे बाट।

*संगीता शर्मा कुंद्रा चंडीगढ़*

5 .15 3 July 2021

Friday, 2 July 2021

1695 पढ़ाई

आजकल पढ़ाई का ,ढंग बदल गया है। 

देखो आज कल हर चीज का,रंग बदल गया है।


पहले पढ़ाई का मतलब होता था स्कूल जाना।
अब पढ़ाई होती है मतलब इंटरनेट का जमाना ।

खेलते कूदते थे बच्चे जाकर स्कूल।
अब तो बैठे रहते हैं लेकर स्टूल ।

क्या करें जमाना बदल गया है।
आजकल हर चीज का ठिकाना बदल गया है।

(शॉपिंग भी होती थी जाकर बाहर।
अब तो शॉप भी घर के भीतर आ गया है ।

एग्जाम के दिनों का अपना ही डर होता था ।
अब ऑनलाइन ने सब कुछ बदल दिया है ।

कभी-कभी तो पेपर ही नहीं होते ।
नालायक और होशियार का अंतर  टल गया है ।

स्कूल जा रहे हैं टीचर ही बस।
बच्चों के लिए घर ही स्कूल में बदल गया है।

1.12 pm. 02 July 2021 Friday
*संगीता शर्मा  कुंद्रा चंडीगढ़*

111 July

Thursday, 1 July 2021

1694 जंग जिंदगी की जारी है

 जंग जिंदगी की जारी है ,

हार जीत का पता नहीं ।

अंत तक जो लड़ेंगे जंग ,

जिंदगी में जीतेंगे वही ।


अपना हौसला जारी रख ,

साँसो की डोर दे उसके हाथ ।

कर्म तू अपना करता चल ,

ऊपर वाला देगा साथ ।


हो जाए जो मन की अच्छा ,

नहीं हुआ तो उससे अच्छा ।

हो सकता है तेरी मंजिल पक्की हो ,

मिलने वाला फल अभी हो कच्चा ।


हार जीत को छोड़ दे तू,

 कर्म तू अपना करता चल।

जीवन जी ले खुश होकर के,

उसकी रज़ा में खुश रहता चल।

8.39pm 1 July 2021